Saturday, July 20, 2013

संस्कृत भाषा : भवतः स्वागतम् -- रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः । विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥ (Part -II)




बुद्धिमत्ता और विज्ञानवाद की कूद यदि प्रामाणिक होगीतो विश्व भारत के इस भाषा-रत्न को मरने नहीं देगा  समाज का सज्जन वर्ग यदि ध्येयबद्ध और प्रयत्नशील रहातो वैदिकों का अप्रतिम तप ज़रुर यशदायी होगाऔर संस्कृत को खोयी हुई गरिमा पुनः प्राप्त करा देगा 
§  संस्कृत भारत की एक शास्त्रीय भाषा है। यह दुनिया की सबसे पुरानी उल्लिखित भाषाओं में से एक है।
§  संस्कृत हिन्दी-यूरोपीय भाषा परिवार की मुख्य शाखा हिन्दी-ईरानी भाषा की हिन्दी-आर्य उपशाखा की मुख्य भाषा है।
§  आधुनिक भारतीय भाषाएँ हिन्दी, मराठी, सिन्धी, पंजाबीबंगला, उड़िया, नेपाली, कश्मीरी, उर्दू आदि सभी भाषाएं इसी से उत्पन्न हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है।
§  हिन्दू धर्म के लगभग सभी धर्मग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे हुए हैं। आज भी हिन्दू धर्म के यज्ञ और पूजा संस्कृत भाषा में ही होते हैं।
§  आधुनिक विद्वान मानते हैं कि संस्कृत भाषा पाँच हज़ार सालों से चलता  रहा है। भारतवर्ष में यह आर्यभाषा सर्वाधिक महत्त्वपूर्णव्यापक और संपन्न है। इसके द्वारा भारत की उत्कृष्टतम प्रतिभाएँअमूल्य चिंतनमननविवेकरचनात्मकसृजन और वैचारिक ज्ञान की अभिव्यक्ति हुई है।
§  आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा पुस्तक संरचना की धारा अबाध रूप से बह रही है। आज भी यह भाषा (अत्यंत सीमित क्षेत्र में ही सहीबोलीपढ़ी और लिखी जाती है। इसमें व्याख्यान होते हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक भाषा भाषी योग्यजन इसका परस्पर वार्तालाप में भी प्रयोग करते हैं। हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं (डेड लैंग्वेजेज़से संस्कृत की स्थिति सर्वथा भिन्न है। यह अमर भाषा है 
संस्कृत का अर्थ हैसंस्कार की हुई भाषा। इसकी गणना संसार की प्राचीनतम ज्ञात भाषाओं में होती है। संस्कृत को देववाणी भी कहते हैं।
§  ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। ऋग्वेद के मन्त्रों का विषय सामान्यतयज्ञों में की जाने वाली देवताओं की स्तुति है और ये मन्त्र गीतात्मक काव्य हैं।
§  यजुर्वेद की शुक्ल और कृष्ण दो शाखाएं हैं। इसमें कर्मकांड के कुछ प्रमुख पद्यों का और कुछ गद्य का संग्रह है। ईशोपनिषद इसी का अंतिम भाग है।
§  सामवेद मेंजिसका संकलन यज्ञों में वीणा आदि के साथ गाने के लिए किया गया है, 75 मौलिक मन्त्रों को छोड़कर शेष ऋग्वेद के मन्त्रों का ही संकलन है।
§  अथर्ववेद की भी शौनक और पैप्पलाद नामक दो शाखाएं हैं। इस वेद में जादू-टोनावशीकरण आदि विषयक मन्त्रों के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम के सूक्त भी मिलते हैं। यह प्रथम तीन वेदों से भिन्न तथा गृह्य और सामाजिक कार्यकलापों से संबंधित है।
§  संस्कृत भाषा के दो रूप माने जाते हैं वैदिक या छांदस और लौकिक चार वेद संहिताओं की भाषा ही वैदिक या छांदस कहलाती है। इसके बाद के ग्रंथों को लौकिक कहा गया है।
ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञों के कर्मकांड का विवेचन है। प्रत्येक वेद के अलग-अलग ब्राह्मण हैं ऋग्वेदके ब्राह्मण 'ऐतरेयऔर 'कौषीतकीयजुर्वेद का 'शतपथ और सामवेद का 'पंचविंशहै। ब्राह्मण ग्रंथों के बाद आख्यकों और उपनिषदों का क्रम आता हैं उपनिषदों का कर्मकांड से कोई संबंध नहीं है। ये ईश्वरप्रकृति और उनके पारस्परिक संबंध की ब्राह्म विद्या की विवेचना करते हैं। उपनिषदों की कुल ज्ञात संख्या 18 है जिनमें ये दस प्रमुख हैं-ईशबृहदारण्यकऐतरेयकौषीतकीकेनछांद्योग्यतैत्तरीयकठमंड्रकऔर मांडूक्य। ये उपनिषद प्राचीन हैं। कुछ की रचना बहुत बाद तक होती रही हैजैसे 'अल्लोपनिषदजो स्पष्टतमुसलमानों के आगमन के बाद लिखा गया।
हिन्दू समाज वेदों को अनादि और अपौरुषेय मानता आया है। पर आधुनिक विद्वानों के एक वर्ग ने वेदों का रचना काल 6000 .पूसे लेकर 2500 .पूतक तथा ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों का समय इसके बाद का निर्धारित किया है। संस्कृत साहित्य में वैदिक वांड्मय के बाद व्यास रचित महाभारत और वाल्मीकि रचित रामायण प्रसिद्ध ग्रंथ है। महाभारत को उसके विस्तृतज्ञान-भंडार को देखते हुए पांचवां वेद भी कहा जाता है। विषय की दृष्टि से रामायण की कथा पहले की (त्रेता युगकी है और महाभारत की बाद (द्वापर युगकी। पर महाभारत का रचना-काल पहले का है। 18 पर्वों का यह ग्रंथ .पूचौथी-तीसरी शताब्दी तक अपना मूल रूप ले चुका था। महाभारत से आख्यानों की परंपरा आरंभ होती है और रामायण से महाकाव्य और खंड काव्यों कीजिस परंपरा में कालिदास जैसे कवि हुए।
§  पुराणों का अपना महत्त्व है। ये सृष्टिलय, मन्वंतरोंप्राचीन ऋषि-मुनियों तथा राजवंशों के चरित्र पर प्रकाश डालते हैं। इनका रचनाकाल दूसरी-तीसरी शताब्दी से आठवीं-नंवी शताब्दी तक माना जाता है। इनका महत्त्व तत्कालीन भारत की सभ्यता और संस्कृति के अध्ययन की दृष्टि से विशेष है। कुल पुराण 18 हैं-विष्णु, पद्म, ब्रह्म, शिव, भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य,गरुड़, ब्रह्मांड और भविष्य
§  स्मृतियांजिनमें 'मनुस्मृति', 'याज्ञवल्क्य स्मृति', 'नारद स्मृतिऔर 'पाराशर स्मृतिमुख्य हैंदूसरी-तीसरी शताब्दी की रचनाएं मानी जाती हे। 'अमरकोशकी रचना चौथी –पांचवीं ईस्वी में हुई। कौटिल्य का 'अर्थशास्त्रअपने विषय का एकमात्र ग्रंथ है जिसमें राज्य प्रबंधराजनीति , समाजिक , आर्थिक संगठन की सांगोपांग विवेचना की गई है।
§  संस्कृततमिल को छोड़कर सभी भारतीय भाषाओं की माता है  इसकी अधिकांश शब्दावली या तो संस्कृत से ली गयी है या संस्कृत से प्रभावित है  पूरे भारत में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन से भारतीय भाषाओं में अधिकाधिक एकरूपता आयेगी जिससे भारतीय एकता बलवती होगी  इसे पुनः प्रचलित भाषा भी बनाया जा सकता है 
§  संस्कृत का प्राचीन साहित्य अत्यधिक प्राचीनविशाल और विविधता से पूर्ण है  इसमें अध्यात्म, दर्शनज्ञान-विज्ञानऔर साहित्य की भरपूर सामग्री है  इसके अध्ययन से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढावा मिलेगा  संस्कृत साहित्य विविध विषयों का भंडार है। इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व के चिंतन पर पड़ा है। भारत की संस्कृति का यह एकमात्र सुदृढ़ आधार है। भारत की लगभग सभी भाषाएं अपने शब्द-भंडार के लिए आज भी संस्कृत पर आश्रित हैं। संस्कृत को कम्प्यूटर के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।

संस्कृत भाषा की विशेषताएँ
संस्कृतविश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेदकी भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है[
इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।
सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है।
इसे देवभाषा माना जाता है।
संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है अतः इसका नाम संस्कृत है। केवल संस्कृत ही एकमात्र भाषा है जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनिमहर्षि कात्यायन और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है।
) शब्द-रूप विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैंजबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 रूप होते हैं।
) द्विवचन सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है।
) सन्धि संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो शब्द निकट आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है।
इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धि के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।
१०शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
११संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है। जैसे - अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दोनो ही ठीक हैं।
१२संस्कृत विश्व की सर्वाधिक 'पूर्ण' (perfect) एवं तर्कसम्मत भाषा है।
१३) देवनागरी एवं संस्कृत ही दो मात्र साधन हैं जो क्रमशअंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
१४संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरन्तर होती  रही है। इसके कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोड़ों सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं। पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तकइतनी दूरी तक व्याप्तइतने उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं है।
भारत और विश्व के लिए संस्कृत का महत्त्व
·         संस्कृत कई भारतीय भाषाओं की माता है। इनकी अधिकांश शब्दावली या तो संस्कृत से ली गयी है या संस्कृत से प्रभावित है। पूरे भारत में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन से भारतीय भाषाओं में अधिकाधिक एकरूपता आयेगी जिससे भारतीय एकता बलवती होगी। यदि इच्छा-शक्ति हो तो संस्कृत को हिब्रू की भाँति पुनः प्रचलित भाषा भी बनाया जा सकता है।
·         हिन्दूबौद्धजैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में हैं।
·         हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है।
·         हिन्दुओंबौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत पर आधारित होते हैं।
·         भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है। भारतीय संविधान की धारा 343, धारा 348 (2) तथा 351 का सारांश यह है कि देवनागरी लिपि में लिखी और मूलतसंस्कृत से अपनी पारिभाषिक शब्दावली को लेने वाली हिन्दी राजभाषा है।
·         संस्कृतभारत को एकता के सूत्र में बाँधती है।
·         संस्कृत का प्राचीन साहित्य अत्यन्त प्राचीनविशाल और विविधतापूर्ण है। इसमें अध्यात्मदर्शनज्ञान-विज्ञानऔर साहित्य का खजाना है। इसके अध्ययन से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
·         संस्कृत को कम्प्यूटर के लिये (कृत्रिम बुद्धि के लियेसबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।
·         दुनिया में संस्कृत शायद पहली और आख़री ऐसी भाषा है जिसमे स्वर को भी आधा करके लिखा जा सकता है


रूपेण यौवनेन च युक्ताः उत्तमकुले सञ्चाताः अपि जनाः विद्याविहीनाः यदि भवेयुः तर्हि ते गन्धरहितानि किंशुकपुष्पाणि इव न शोभन्ते । विद्या एव वस्तुतः व्यक्तेः शोभां वर्धयति । विद्याविहीनाः पुरुषाः तु सुगन्धविहीनानि पुष्पाणि इव आकर्षणरहितानि भवन्ति ।

संस्कृत और एकता भाषा वह माध्यम है जो विचारों और भावनाओं को शब्दों में साकारित करती है, और संस्कृति वह बल है जो हम सब को एकसूत्रता में परोती है । पर भारतीय संस्कृति की नींव “संस्कृत” में है ।
“एकता” कृति में चरितार्थ होती है, और कृति की नींव विचारों में है । पर विचारों का आकलन भाषा के बगैर संभव नहीं । तब भाषा ऐसी समृद्ध होनी चाहिए जो गूढ, अमूर्त विचारों और संकल्पनाओं को सम्यक् रुप से आकार दे सकें । जितने स्पष्ट विचार, उतनी सम्यक् कृति; और विचार-आचार की समाज में एकरुपता याने “एकता” ।
आइये सुसंस्कृत बनें ! और उस अंतर को मिटा दें जो प्रांत, वर्ग, वर्ण, भाषा, संप्रदाय और वित्त इत्यादि ने व्यक्ति-व्यक्ति के बीच खडा किया है । 

यदि आज समय रहते हम नहीं जागे तो कल को हमारी आने वाली पीढियाँ हमसे यही पूछेंगी कि आखिर यह संस्कृत क्या है और इसे किसने बनाया था?