Saturday, April 20, 2013

वेद : आध्‍यात्मिक कोष



हिंदू धर्म विश्‍व का सबसे प्राचीन धर्म है। यह भारत में सर्वाधिक मान्‍यता प्राप्‍त धर्म है। भारतीय मनीषियों, विद्वानों, ऋषि मुनियों तथा दार्शनिकों का आध्‍यात्मिक कोष है। इस धर्म को सनातन तथा वैदिक धर्म भी कहा जाता है। वस्‍तुत: वैदिक धर्म के विकसित रूप को ही हिन्‍दू धर्म कहा जाता है।

महत्‍वपूर्ण धर्मग्रंथ वेद
वेदों की कुल संख्‍या चार है.. ऋग्‍वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्वेद। 

ऋग्‍वेद
भारतीय आर्यों की प्राचीनतम पुस्‍तक ऋग्‍वेद है। इसमें ऋचाओं अथवा स्‍तुति मंत्रों का संकलन किया गया है। ऋग्‍वेद में 1018 सूक्‍त हैं। इसमें दस मंडल हैं। 10580 ऋचाएं हैं। ऋग्‍वेद में प्रत्‍येक ऋचा के साथ उसके ऋषि तथा देवता का नाम भी लिया गया है। ऋग्‍वैदिक सूक्‍तों से तत्‍कालीन सभ्‍यता एवं संस्कृति का परिचय मिलता है। 

यजुर्वेद
यजुर्वेद या‍ज्ञिक मंत्रों का संकलन मात्र है। इसकी शैली गद्यात्‍मक है। इसके मंत्रों का संकलन ऋग्‍वेद तथा अथर्ववेद से किया गया है। इसमें कुल 40 अध्‍याय हैं। प्रत्‍येक अध्‍याय का संबंध किसी न किसी याज्ञिक क्रिया से है। महर्षि पतंजलि के समय यजुर्वेद 101 शाखाओं में उपलब्‍ध था परन्‍तु आज केवल इसकी छह शाखाएं ही प्राप्‍त हैं। 

सामवेद
महाभाष्‍य से यह ज्ञात होता है कि सामवेद की एक सहस्र शाखाएं हैं। परन्‍तु वर्तमान में तीन शाखाओं की ही जानकारी प्राप्‍त हुई है। यह है..कौथुम, राणायनीय व जैमिनीय। सामवेद संगीतमय वेद है। इसमें कुल 99 मूल मंत्र है। शेष मंत्रों को ऋग्‍वेद से संकलित किया गया है। यह दो भागों में है। पहले भाग में छह अनुभाग हैं, जिनको प्रपाठक कहा गया है तथा दूसरे भाग में नौ प्रपाठक हैं। सामवेद को भारतीय संगीत का प्रथम ग्रंथ भी कहा जाता है। 

अथर्ववेद
इसमें बीस काण्‍ड, चौतीस प्रपाठक, 111 अनुवाक, 731 सूक्‍त तथा 5839 मंत्र हैं। इसमें अनेक संस्‍कारों तथा कर्मकाण्‍डों का वर्णन किया गया है। यह वेद सामान्‍य भौतिकवादी विषयों तथा दर्शन एवं अध्‍यात्‍मवाद जैसे गूढ विषयों का समन्‍वय है। वर्तमान में इसकी केवल दो ही शाखाएं उपलब्‍ध हैं। पिप्‍पलाद तथा सौना। 


उपनिषद-
उप का अर्थ है निकट तथा निषद का अर्थ है बैठना। अर्थात जिन ग्रंथों की शिक्षा शिष्‍य अपने गुरु के निकट बैठकर प्राप्‍त करते थे, उन्‍हें आर्यों ने उपनिषद का नाम दिया था। इनकी संख्‍या 54 के लगभग है। इनमें अध्‍यात्‍म विद्या के विकट तथा बोध रहस्‍यों का विस्‍तार से वर्णन है। इनमें छांदोग्‍य, मांडूक्‍य, तैतरीय, श्‍वेताश्‍वतर, ईशावास्‍य, केन, कठ, प्रश्‍न आदि प्रमुख हैं। वेदांग- वेदांगों की रचना का मुख्‍य उद़देश्‍य वेदों के ज्ञान तथा रहस्‍य को स्‍पष्‍ट करना था। इनका रचना काल उत्‍तर वैदिक काल माना गया है। इनकी संख्‍या छह है। शिक्षा (स्‍वर शास्‍त्र), कल्‍प (कर्मकाण्‍ड), व्‍याकरण, निरुक्‍त (शब्‍द व्‍युत्‍पत्ति विद्या), छंद तथा ज्‍योतिष व पुराण।

सूत्र साहित्‍य-
सूत्र साहित्‍य से तत्‍कालीन धार्मिक तथा सामाजिक अवस्‍था के बारे में ज्ञान प्राप्‍त होता है। सूत्र साहित्‍य तीन भागों में विभक्‍त है। श्रौत सूत्र, गृहय सूत्र व धर्म सूत्र। इनमें श्रौत सूत्र का संबंध ब्राहमणों के ग्रंथों में वर्णित यज्ञों से है। गृह सूत्र में गृहस्‍थ से संबंध रखने वाले संस्‍कारों, कर्मकाण्‍डों तथा मौलिक कर्तव्‍यों का वर्णन किया गया है। धर्म सूत्र में राजनैतिक, वैधानिक, सामाजिक व्‍यवस्‍था का वर्णन किया गया है।

अंग्रेजों ने हमारी सभ्यता का विनाश करने का काफी प्रयास किया; आज हमारा दायित्व है कि हम वो खोया ज्ञान पुनः वापस पाने का प्रयास करें !!

‘आयुर्वेद’ : ‘जीवन का ज्ञान’


आयुर्वेद की रचनाकाल ईसा पूर्व ३,००० से ५०,००० वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस-पास या साथ का ही है ।

आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह अथर्ववेद का विस्तार है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। ‘आयुर्वेद’ नाम का अर्थ है, ‘जीवन का ज्ञान’ - और यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है।

इस शास्त्र के आदि आचार्य अशिवनीकुमार माने जाते हैं जिन्होनें दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सरि जोड़ा था । अश्विनीकुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की । इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया । काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं । उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वैद पढ़ा । अत्रि और भरद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं । चरक की संहिता भी प्रसिद्ध है । आयुर्वैद अथर्ववेद का उपांग माना जाता है । इसके आठ अंग हैं :


 (१) शल्य (चीरफाड़)
 (२) शालाक्य (सलाई)
 (३) कायचिकित्सा (ज्वर, अतिसार आदि की चिकित्सा)
 (४) भूतविद्या (झाड़-फूँक)
 (५) कौमारभृत्य (बालचिकित्सा)
 (६) अगदतंत्र (बिच्छू, साँप आदि के काटने की दवा)
 (७) रसायन
 (८) बाजीकरण । 



आयुर्वेद शरीर में बात, पित्त, कफ मानकर चलता है । इसी से उसका निदानखंड कुछ संकुचित सा हो गया है । आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनीकुमार, धन्वतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पराशर, सीरपाणि हारीत), सुश्रुत और चरक ।

सुश्रुत के अनुसार काशीराज दिवोदास के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षिर्यों के साथ सुश्रुत जब आयुर्वेद का अध्ययन करने हेतु गये और उनसे आवेदन किया । उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन लोगों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद को एक सहस्र अध्याय- शत सहस्र श्लोकों में प्रकाशित किया और पुनः मनुष्य को अल्पमेधावी समझकर इसे आठ अंगों में विभक्त कर दिया ।

मेरी प्रार्थना है आयुर्वेद को अधिकाधिक प्रयोग करें एवं इसके प्रयोग हेतु सभी को प्रोत्साहित करें ,,, !!